Monday, March 15, 2010

नारी ही यदि है अज्ञान, तो देश कैसे बने महान

       आज कल एक चर्चा हर किसी के बीच बहस बन जाती है, माहिला आरक्षण बिल का नाम लेते ही हमारे लोक प्रतिनिधियों यानी सांसदों में कहा सुनी हो जाती है. लेकिन एक बात जो मैं सोचता हूँ कि क्या वाकई इस मुद्दे पर इतना बवाल होना जरूरी है..., क्या इस मुद्दे पर लोकतंत्र को तार तार करना जरूरी है. क्या किसी ने इस बेबुनियादी बवाल में शामिल होने से पहले, समाज में होने वाले इस ऐतहासिक बदलाव के क्षणों से सुनहरे भविष्य की आहट महसूस की..? और इस आहट को महसूस करने के लिए हमें जड़ों से पत्तो तक का सफ़र करनाहोगा.

       महिला, स्त्री ये शब्द सुनते ही हर किसी के जेहन बहुत सी तस्वीरें बनकर उभरती है, कोई आधी आबादी की व्याख्या रुपी गहराई में चला जाता है, तो कोई काम के वासना रूप को सोचने लगता है...तो कोई उसके पावन रूप पत्नी, बीवी, बहन के बारें सोचने लगता है. लेकिन हम उसे किसी भी रूप में देंखे, एक सम्मान कहीं न कहीं, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मन में उभर ही आता है. वो बात अलग है कि समाज के दृष्टिभ्रम ने उसको उसका सम्मान देने के बजाय उसे एक उपभोग समझकर अपमान के कडवे घूँट पीने के लिए पग पग पर मजबूर किया, और आज उसी मजबूरी को महिलाओ का शसक्त शस्त्रीकरण का हाथियार बनाने का प्रयास किया जा रहा है. और महिला आरक्षण बिल को इसी महाभियान के तहेत पहली पूर्णाहूति माना जा सकता है.
लेकिन हमारे कुछ महत्वाकांक्षी नेता...जो इस पवित्र और सार्थक पहल में अपना रोड़ा अटकाने का प्रयास कर रहे है, क्या उन्हें इतना भी याद नहीं कि जिनके आरक्षण के लिए वो विरोध कर रहे है, आज उनका अस्तित्व उन्ही के अक्ष की देन है. क्या वो पल भर के लिए भी ये सोचने का प्रयत्न नहीं करते कि जब समाज में हमेशा उपेक्षाओ का सामना करते करते नारी ने इस सृष्टी को ऐसे ऐसी महान विभूतिया दी है जिनके अनुसरण ये समाज आगे बढ़ता है, अगर उन्हें एक अंश के रूप में भी समाज में उच्च स्थान दिया जाएगा तो वही नारी हमारी गौरवपूर्ण संस्कृति को कितने और रत्न देगी. परन्तु सत्ता की अंधी दौड़  में जो परिवार तक को भुला बैठा है, उसे भला समाज के स्वर्णिम भविष्य से क्या लेना देना. उसे तो केवल अपने हिस्से की स्वार्थ की रोटियां चाहिए. लेकिन इस पूरे प्रकरण मैं कोई भी चाहे कुछ भी करें या कहें पर एक बात हमेशा ध्यान रखने की है..वो ये कि... 

"नारी इस ब्रह्माण्ड और सृष्टी की जनक और पोषक दोनों ही है, या यूं कहें हर मानव, हर परिवार, हर समाज और हर राष्ट्र की नीव नारी है, अगर हम अपनी नीव को मजबूत करने में सहयोगी बनेंगे तभी हमारा भविष्य भी मजबूत होगा, और इतिहास गवाह है की जब - जब नारी को अपनी योग्यता दिखाने का मौका मिला है , तब तब उसने अपने आप को पुरुषों से भी श्रेष्ठ प्रस्तुत किया है. चाहे वो लक्ष्मी बाई हो, पन्नाधाय हो, मदर टेरेसा हो या इंदिरा गाँधी...!! इसलिए मेरी अपने भारतवासियों और और उन् लोगो से, जो भी मेरा ब्लॉग पढ़ते है , उनसे ये निवेदन है कि इस ऐतहासिक पहल का खुलकर समर्थन करें, और हमारे भारत को समुन्नत राह की और अग्रसर करने में अपना छोटा ही सही मगर महत्त्वपूर्ण योगदान निभाएं."
~नारी ही यदि है अज्ञान, तो देश कैसे बने महान~

तो बस 
"अब मैं नहीं हम"

~विचार : जो युग परिवर्तन कर दें~
15 - मार्च-2010 

जीवन में ऊंचा उठने के चार सूत्र :-
 > ईमानदारी
> समझदारी 
> जिम्मेदारी
> बहादुरी
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य