Friday, December 31, 2010

नए वर्ष 2011 की शुभकामनायें...


बीत गए वो लम्हे सारे...बीत गए वो दिन....
कुछ हँसते खेलते बीते..कुछ तारे गिन गिन
सोचा कि आखिर क्या है ये "वर्षों" का आना जाना
जिसके गम और और खुशियों में डूब जाता है ज़माना
तो हर बार ज़हन में निकाल कर आई एक ही बात...
.....कि जो 'आज' है.. वही बीता हुआ कल भी है और आने वाला भी कल
और इसी कल पर ही टिका है सबकी उम्मीदों का भार...
इसी भार को हल्का कर पहुंचे
सभी के पास हमारी आशाओं और प्यार का उपहार..
....इसी भाव के साथ महसूस हो रहा है 
"नए साल का आगाज़"
~~मुबारक हो...मंगलमय हो....और हर पल का मनुहार को
आप सभी का नए वर्ष 2011 में सबसे सुखी संसार हो..~~
सूर्य प्रकाश शर्मा
अध्यक्ष
"We Youth Foundation"
9871117901

Wednesday, December 29, 2010

एक भावभरी अपील


(परिवर्तित).....कृपया इसे जरूर पढ़े
 परमात्मा की प्रेरणा से समाज के कुछ प्रतिष्ठित महानुभावों और "We Youth Foundation" के कुछ सशक्त युवाओं के सम्मल्लित सहयोग से 6  जनवरी 2011  को 2 गरीब कन्याओ का विवाह कराया जा रहा है...इस महान कार्य के सफल संचालन में आप सभी मित्रों का आशीर्वाद उन कन्याओं के जीवन के लिए संजीवनी साबित होगा...जो भी लोग इस महान कार्य में अपनी ओर से कन्यादान देना चाहे ya इस कार्यक्रम से जुड़ी अधिक जानकारी या निमंत्रण पत्र पाना चाहें तो 9871117901 या 9368015620 पर कॉल करे या अपनी फेसबुक पर सन्देश के माध्यम से अपनी E-mail ID भेजें..
निवेदक- सूर्य प्रकाश शर्मा, अध्यक्ष, "We Youth Foundation

Monday, December 27, 2010

"We Youth Foundation" ..... ~~युवा जोड़ो अभियान~~

"We Youth Foundation"
युवा जोड़ो अभियान
~~युवा जाग्रति बनाम राष्ट्र जाग्रति~~
देश की 54 % तरुणाई शक्ति  तरुण राष्ट्र 
"स्वर्णिम इतिहास अभी तक का केवल यही बतलाता है कि...
 जिस और जवानी जाती है, उस और ज़माना जाता है !!"
अत: देश कि 54 % तरुण शक्ति को अपने गौरवमयी इतिहास का बोध करा 
व्यक्ति, परिवार, समाज एवं राष्ट्र निर्माण में नियोजित करना होगा
इसी हेतु
~~~राष्ट्र के कर्णधारों के नैतिक , बौद्धिक एवं सांस्कृतिक जागरण का रचनात्मक अभियान~~~  


*सरंक्षक एवं प्रेरणास्रोत* 
पूज्य गुरुदेव पं. श्री राम शर्मा आचार्य


*अध्यक्ष*
सूर्य प्रकाश शर्मा
9871117901
9368015620

*मुख्य सलाहकार*
डॉ. रचना विमल, प्रवक्ता - दिल्ली विश्वविधालय
श्री विनोद कुमार शर्मा, प्रोजेक्ट हेड - नेटप्रोफेट्स ग्लोबल 
श्री प्रह्लाद प्रसाद शर्मा, समाजसेवी
श्री अनिल सप्रे जी, भोपाल
श्री गोविन्द राम बोहरा, राजस्थान 

Sunday, December 26, 2010

कैसा भारत स्वाभिमान..

कुछ लोग मुझे आजकल ऐसे मिलते है जो भारत स्वाभिमान की बात करते है ..पर देखकर और जानकार हैरान होता हूँ कि वो लोग  खुद की कही हुई बातों पर ही सच्चाई से अनजान है...और जब कभी भी उनसे उन्ही के पहलुओं पर कुछ भी व्यवहारिक सच्चाई की बात करो तो उनके मुहं पर ताला लग जाता है...और वो बिना कुछ गए फिर से धुंध की तरह धुंधले होकर चले जाते है...जय हो भारत स्वाभिमान..
स्वाभिमान के सच्चे व्यवहारिक पहलुओं से जुड़ने के लिए अब जागे और आज ही "We Youth Foundation" ज्वाइन करने के लिए 9871117901 या 9368015620 पर कॉल करें...
क्यों की विरोध से विद्रोह...विद्रोह से अशांति और अशांति से विनाश का जन्म होता है,,,इसका वर्तमान उदाहरण राजस्थान है.. 
तो आओ फिर आज से ही एक शांत और सुन्दर भारत के निर्माण के लिए संकल्पित हो...
क्यों कि 
"अब मैं नहीं हम"

Thursday, December 23, 2010

सरकार और देश का विरोधी बनकर देशभक्ति का गुणगान - समझ से परे

       पिछले कई दिनों से मैं अपने एक सर्वे में लगा था, सर्वे इस बात का कि आखिर भारत में कुछ लोग, कुछ संगठन, कुछ राजनैतिक पार्टियां इत्यादि  किन विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार करने का आम जनता का आह्वान करते है,  सुबह शाम, हर पल अपनी बातों में गीता के उदाहरानो से लोगो को अपने प्रभाव में खींचने वाले लोगो को क्या इतनी बात भी समझ में नहीं आती कि गीता का सार ही "वसुधैव कुटुम्बकं" कि सूक्ति से बंधा है....ऐसे में क्या देशी और क्या विदेशी...और अपने इन्ही प्रश्नों का जवाब लेने के लिए मैंने बहुत से युवाओं से प्रत्यक्ष और बहुत से युवाओ से फैसबुक के माध्यम से बात कि ...पर दुःख ही हुआ कि अभी उनके आधार हिन् तर्क थे..और आने वाले समय में उनका अपने ही देश से विद्रोह पनपेगा....और मुझे सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा कि जो युवा भारत के सहयोगी बन सकते है, उनको आधारहीन और देश कि सरकार के विरुद्ध एक हथियार बनाकर इस्तेमाल करने कि शीत योजना चल रही है....!! 
       ऐसे मैं उन सब युवाओ से अपनी बात शुरू करने से पहले एक बात ये कहना चाहूँगा कि...अपने देश में रहने वाले ऐसे किसी भी व्यक्ति, पनपने वाले किसी भी व्यवसाय या लागू होने वाली किसी भी ऐसी योजना , जिसकी अनुमति सरकार ने काफी विचार करने के बाद दी हो, उनका विरोध करना देश भक्ति नहीं हैं बल्कि हम देश को भविष्य के सन्दर्भ में एक और आतंरिक विद्रोह का दूरगामी अवसर दे रहे है.
       चलिए अब हम युवाओं से हुई ढेरसारी बातों का विश्लेषण करने की और चलते है...और इसका निर्णय वे सभी लोग करें जो भी इस लेख को पढ़ें, और सोचें कि आने वाला भारत ऐसे संगठनो के साथ आगे बढ़कर स्वर्णिम होगा या "We Youth Foundation" की स्वयं निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण की योजनागत तरीके से तैयार कि गई विकासात्मक नीतियों के साथ...
       अपने इस सर्वे की शुरुआत मैं सभी से एक प्रश्न के माध्यम से करता था, कि आखिर वो समाज कार्य से क्यों जुड़े, कोई भी एक सेमीनार या सामाजिक कार्य का हिस्सा बनकर आप क्या महसूस करते है, और इसका जवाब भी सभी से एक जैसा ही मिलता, जीमे कोई कहता कि उनको कि उन्हें अच्छा महसूस होता है और कोई कहता कि उन्हें आतंरिक संतुष्टि मिलती है, पर इसके बाद जिन प्रश्नों का जो सिलसिला शुरू होता वही से भ्रम का मायाजाल भी शुरू होता, और अनुमान होता था कि  ये भी सरहद पार चल रहे आतंकवादी शिविर से कम नहीं है.
       उनसे पुछा गया की वो विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार को क्यों ठीक समझते है...तो किसी का जवाब मिला कि एम् .एन.सी कम्पनीयां भारत को लूटने में लगी है, किसी ने कहा कि कोका कला कम्पनीयों के पेय मानक ठीक नहीं है, किसी ने कहा कि कोलगेट कंपनी के उत्पाद ठीक तरीके से नहीं बने हुए, और किसी ने कहा कि खेती में विदेशी तकनीकी के फर्टीलाईज़र का इस्तेमाल मिटटी को कमजोर कर रहा है...इसलिए भारत सरकार से आरपार की लड़ाई करने का इरादा है..
       अब अगर हम इन् बेतुकी बातो कि थोड़ी सी चीड फाड़ करे तो स्थिति बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि आखिर ये युवा अपनी ही सरकार के बेवजह विरोधी बनकर देश द्रोही बनने कि ओर अग्रसर है.. क्यों कि जिन एम्.एन.सी कंपनी का लोग विरोध करने और करने को भीड़ जोड़ रहे है आज उन्ही एम्.एन.सी कंपनी कि वजह से हम दोबारा अपने पैरों पर खड़े हो पाएं है, इसके लिए उन्हें 1990 में आये आर्थिक पतन का विश्लेष्ण करना चाहिए....
       अब दूसरी बात आती है कि कोका कोला या कोलगेट जैसी कम्पनीयों के मानक...इसके लिए सरकार या कम्पनीयां नहीं बल्कि जनता खुद दोषी है , क्यों कि सरकार हमारी ही जेब से इकठ्ठे किये गए रुपये में से करोड़ो सिर्फ इसलिए खर्च करती है जिसमे ये प्रचार होता है कि कोई भी चीज़ ISI mark देखकर ख़रीदे...तो फिर हम उसे खरीदते ही क्यों है , क्यों नहीं उसको बंद करने के लिए सरकार पर दबाव डाला जाता. न्यायालय के दरवाजे सभी के लिए एक बराबर खुले है, बशर्ते कि क्रातिकारी शुरुवात को पैसो के बल से शान्ति से न दबा दिया जाए.
       उसके बाद अगर खेती में विदेशी फर्टीलाईज़र कि बात करे तो इसका जवाब हमारे खुद के ही पास है, इसके लिए जरा गौर करने वाली बात ये है कि सरकार पिछले 50 सालो से भारत कि जनता से आग्रह करती आई है कि 'हम दो हमारे दो'....पर फिर भी आज हमारी जनसँख्या 50 सालों में  30 करोड़ से 1 अरब हो गई..जिसकी वजह से खेती कि ज़मीन पर घर बनाने के कारण खेती की जगह कम होती जा रही है और जनसँख्या बढ़ती जा रही है, ऐसे में अगर लोगो की जरूरतें पूरी न हो तो फिर सरकार दोषी...आखिर कब तक अपनी कमियों को भूलकर दूसरो पर दोष लगते रहेंगे..
       अब सबसे ज्यादा ताज्जुब तो मुझे तब हुआ जब विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार करने वाले इन् संगठनो से जुड़े लोगो की जीवन शैली, आश्रम और कार्यालयों का मैंने सर्वे किया, क्यों कि वहां एल. जी का ए.सी लगा था, घुमने के लिए टोयोटा कि गाड़ी थी, बाथरूम में सेनिटरी हुकाची की  थी, सबके हाथ में मोबाइल नोकिया का था, मतलब हर तरफ विदेशी वस्तुओं की चमक धमक ...फिर भी पता नहीं क्यों हमारे युवा इन् बातों को नज़रंदाज़ कर अंधी भीड़ में शामिल होकर जुड़ते चले जाते है...
और इसके विपरित इतिहास गवाह है की भारत में हमेशा सबको गले लगाकर अपनाया गया है, इसी कारण हमारा भारत सभी देशो में सबसे महान माना जाता है और अपने इसी स्वभाव के ज़रिये ही पूरा विश्व भारत को आने वाले समय का विश्वगुरु की संज्ञा दे चुका है... और भी बहुत सी बातें इस सर्वे में निकल कर आई जिनका अगले लेख में जिक्र और समाधान किया जाएगा....बस एक बात जो सभी युवाओ से "We Youth Foundation" के माध्यम से आपको एक सन्देश के तौर पर कहनी है वो ये की " विरोध से विद्रोह पनपता है, विद्रोह से अशांति का जन्म होता है और अशांति से केवल विनाश होता है" गीता भी यही कहती है "वासुदेव कुटुम्भकम " और वैसे भी विद्रोह करके किसी का सहयोग नहीं पाया जा सकता इसके लिओये खुद से तपना पड़ता है...और वही ताप क्रांति और इसी क्रांति से परिवर्तन की इबादत लिखी जाती है...."
       इस लेख से जुड़े किसी भी समाधान को स्पष्ट करने के लिए या अगले लेख से जुडी भी किसी भी जिज्ञाषा के लिए कभी भी 9871117901 या 9368015620  पर कॉल करें या surya.dsvv@gmail.com पर मेल भेजें.... देश और विश्व के सुनहरे भविष्य के लिए आज ही "We Youth Foundation" का हिस्सा बने...
To Be Conitnue.....
क्यों कि 
"अब मैं नहीं हम" 

Sunday, December 5, 2010

यह होता है इंसान में भगवान का अंश

 आज की खबर में जाना की दुनिया भर के करीब 650 अरब लोगों में से कुछ चुनिन्दा अमीर लोगों में शुमार भारत के हर दिल अजीज ~"अजीज़ प्रेम जी"~ ने शिक्षा के क्षेत्र में विश्वव्यापी सुधार लाने के लिए 9 हज़ार करोड़ रूपए का दान दिया. उनकी इस क्रांतिकारी और ऐतहासिक पहल से एक नए भारत की इबारत लिखा जाना तो तय हो गया है. क्यों की किसी भी देश के सुनहरे भविष्य के नीव बच्चों के भविष्य पर ही निर्भर करती है, अगर कुछ और ऐसे लोग भारत के भविष्य निर्माण में एक कदम आगे बढ़ा दें तो सच में वो दिन दूर नहीं जब हर घर में शिक्षा होगी और हर मोहल्ले में स्कूल. 
जय हिंद - जय भारत
क्यों की
"अब मैं नहीं हम" 

Thursday, October 28, 2010

कब तक की ये ख़ामोशी है...


कभी जुबां खामोश है तो कभी लब नहीं खुलते मेरे.!!
कभी रिश्ते खामोश है तो कभी अपने नहीं होते मेरे..!!
कभी कल्पना खामोश है तो कभी लफ्ज़ नहीं होते मेरे..!!
कभी मन खामोश है तो कभी ज़ज्बात नहीं होते मेरे..!!
कभी हम खुद से खामोश है तो कभी सपने भी नहीं होते मेरे..!!
भला....
अब पूछे भी किससे कि क्यों है ये ख़ामोशी सी...
और क्यों ख़ामोशी के बेहद करीब ये एहसास है मेरे....


इतनी भीड़ में तन्हाई क्यों है......


इतनी भीड़ में तन्हाई क्यों है,
हर दिल-ए-अजीज में गहराई क्यों है,
क्यों होता है हर महफ़िल में रुखसत का एहसास,
हर पल गुनगुनाती सी ये खामोश सहनाई क्यों है,
आखिर इतनी भीड़ में भी तन्हाई क्यों है.

Monday, September 20, 2010

कॉमनवेल्थ गेम्स- मुसीबतों का पिटारा भाग - 2

आज यानी 20 सितम्बर से शुरू हो जायेगी इन्द्र देवता की बरसात और कॉमनवेल्थ के लिए शुरू की गयी ब्लू लेन की प्रतिस्प्रधता  की नयी जंग की BISAAT ... ?? इस पर एक दिन पहले ही जामा मस्जिद पर हुए एक बचकाने हमले से उड़ी हुई दिल्ली पुलिस की नींद के मद्देनज़र अब ये देखना और भी दिलचस्प होगा कि आखिर भ्रष्टाचार के शिखर तक अपने जमीर को गिराने वाली कॉमनवेल्थ आयोजन समिति के कथन "खेलों के सफल आयोजन को लेकर सरकार प्रतिबद्ध है"..और अपने विज्ञापनो में "सदैव आपके लिए" का दम भरने वाली दिल्ली पुलिस को आने वाले एक महीने में कितनी हकीकत और कितनी खोकले वादे निकल कर आते है...??

Saturday, September 11, 2010

आखिर कब तक.......

लाल बहादुर शास्त्री (स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री) ने समृद्ध भारत के लिए एक सूत्र दिया था...


"जय जवान-जय किसान"

.....पर किसान आज तक भी कर्ज के बोझ के तले दबे आत्महत्या कर रहा है, और जवान बेवजह आतंकवादी, नक्सली, और उग्रवादी हमलो में मारे जा रहे है. 

Sunday, September 5, 2010

कॉमनवेल्थ गेम्स- मुसीबतों का पिटारा भाग - 1

        कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों  के दौरान खास खेल में शिरकत करने वाले मेहमानों और खिलाडियों के आवाजाही के इस्तेमाल के लिए बनाई गयी ब्लू लेन का कल शनिवार 4 सितम्बर 2010 को  ट्रायल हुआ, और ये ट्रायल दिल्लीवासियों के लिए 20 सितम्बर से 20 अक्टूबर तक कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान पहली कुर्बानी की ओर  एक इशारा था...!! इस लेन में प्रवेश करने का मतलब है सीधे आपकी जेब से 2000 रूपैय छू मंतर...और साथ ही घर से ऑफिस और ऑफिस से घर पहुँचने के लिए एवेरेस्ट पर चढ़ने जैसी मसक्कत. ....पर कहीं ऐसा तो नहीं की ये कलमाड़ी जी का कॉमनवेल्थ गेम्स पर लगी राशि निकालने का नया फार्मूला हो.. क्यों कि लगभग 3 करोड़ की जनसँख्या और हर रोज़ सड़कों पर लगभग 40 लाख से ज्यादा वाहन का झेलने वाली वाली दिल्ली में ये नियम कितना कारगर हो पायेगा, इसके लिए यहाँ बताने की नहीं बल्कि गेम्स के बाद ट्रफिक व्यवस्था के उन चालानों को खंगालने की जरूरत है जो केवल ब्लू लेन के लिए काटे गए है. पर "कहें भी क्या और करें भी क्या" जब हमारी पब्लिक ही खामोश है तो भला हम लोकतंत्र के अपराधी क्यों बने. पर हम सब अपना फ़र्ज़ निभाकर अंतिम साँस तक लोगो की अंतरात्मा को जगाने के लिए काम करते रहे,  क्यों की ये देश हमारा है...!! 
    ये थी हमारी कॉमनवेल्थ गेम्स पर जनहित के लिए पहली पेशकश..!! आगे और भी बहुत कुछ कर रहा है आपका इंतजार.....!! क्यों कि ..... 
अब मैं नहीं "हम"   

Profile of an Achiever



Failed in Business, Bankruptcy          – 1831
Defeated in Legislature                         – 1832
Failed in Business Bankruptcy            – 1834
Sweet Heart, Finance Dies                     – 1835
Nervous Breakdown                                 – 1836
Defeated in Election                                – 1838
Defeated in U.S Congress                     – 1843
Defeated again US congress               – 1846
Defeated in US senate                              – 1855
Defeated for US vice president            – 1856
Defeated again for US senate                – 1858

ABRAHAM LINCOLN
elected president of USA                             – 1860

“You Can not Fail until You quit”

Tuesday, July 20, 2010

कहानी पूरी फ़िल्मी है.. ..

~~गांधी गिरी~~

सूर्य प्रकाश और गाँव के एक चौधरी में बातचीत
सूर्य प्रकाश : हुक्का मोय पकड़ा के चौधरी फिर सिरीयस हो गयो...मन्न पूच्छा का होगो तमै..!!
चौधरी : के करूँ....नाचू थारे गैल...तमै तो नाचनो भी ना आवे ठीक ते...!!
सूर्य प्रकाश : तू इतना सिरीयस क्यों से चौधरी...नू बता...!!
चौधरी : मैं एक फिलम बनाना चाहूं सूं..पर स्टोरी के खातिर थारे धोरे भीख मांगने की कोई जरूरत नो.., घणी चौखी स्टोरी है म्हारे धोरे..!!!
सूर्य प्रकाश : मन्ने माथा पीट ली...तुमने लिखी फिलम की स्टोरी..? या अल्लाह सिनेमा हॉल पे रहम करना..!!
<चौधरी बिगड़ जाता है>
चौधरी : मोय पत्तो है...अक तमै मेरे तलेंट ते घणी जलन से...पे इब के फिलम बना के ही मानूंगो...!!
सूर्य प्रकाश : चोरी को खतरों ना हो तो मन्ने भी सुना दे अपनै फिलम की स्टोरी...!!
चौधरी : त़ा सुण  पर बीच बीच में टोकियो मत..!!
<चौधरी ने कहानी शुरू की>
"एक गरीब गाम से..वा गाम में एक गरीब माँ.और गैल वा काअ छोरा रह से...!! माता जी कू सदियों पुराणी खांसी  की बीमारी से...अजुर छोरे ने फर्स्ट क्लास में पास होने की...!! दोनों को कोई इलाज नो.."
सूर्य प्रकाश : लै बीच बीच में हुक्को पीतो रह...!!
चौधरी : परे कर हुक्के नै....बीच में बोल के मेरी कहानी कू भटका मत...रीमैक  का या ज़माना में म्हारी फिल्म बिलकुल असली से...!! आगे सुण...!!
"गाम में एक सूदखोर लाला आर एक जालिम ज़मींदार सै....गैल एक बाँध भी सै...जा मई सदियाँ ते काम चल रहा सै..!"
सूर्य प्रकाश : लेकिन यूं बता चौधरी की अक हर फिलम में गाम के धोरे बाँध ही क्यों बनता रह सै..!!
चौधरी : जिससे गाम की बहु बेटियों कू अपनी इज्जत बचान की खातिर ज्यादा दूर ना भग्नो पड़े..!!
सूर्य प्रकाश : और आस पास कड़ी थानों भी नज़र ना आवे...!!
चौधरी : ज़मींदार के होते थानेदार की काह जरुरत..!!
सूर्य प्रकाश : हाँ भई बर्बाद गुलिस्तान कू बस एक ही उल्लू काफी है...
<चल कहानी सुण>
चौधरी : "गरीब माँ को गरीब छोरा एक दिन अमीर ज़मींदार की शहर ते लौटी छोरी कू देख लेता सै..बस फिर वेह सारे काम छोड़ के हीरोइन के गैल 'आल्हा' गाने लाग्या .!!
सूर्य प्रकाश : फिर के होया..
चौधरी : ज़मींदार ने हीरो की माता जी कू ठाके शेर के बाड़े में डाल दई...!! माता जी कू खांसता देख शेर बोल्या- दुखी मत हो माई..आज मन्ने रोजे रखे है..इब्बी इफ्तखार तक तम्मे कोई खतरा नो...!!
फिर माई बोली - हम्बे तब तक तो हीरो आ जा गा...!!
फिर माता जी कू बचाने की खातिर हीरोइन शेर के बाड़े में कूद गयी..!!
शेर बोल्या : इफ्तखार में अभी आधा घंटा बाकी सै...आप दोनों कौ बहूत बहूत शुक्रिया..!!
माई बोली : हीरो कित मर गयो...!!
हीरोइन बोली : तू क्यों बावला हो रया सै....अभी तो रोजा खोलने में तीस मिनट बाकी सै...
खैर इतनी देर में हीरो बाड़े कौ छत से रस्सी लै के कूदो..!! और  दोनों कू ठाके छत से झूलने लाग्या..!! तब शेर ने हीरो से रिक्वेस्ट करी...भाई आज मेरे धोरे रोजा खोलने कू एक भी खजूर नो...तेरे धोरे दो दो है...एक मन्ने दे दे ठाकुर...!! हेरोइन को टपका देना ना...!!
तभी माता जी कू खांसी का दौरा पड़ा...आर वा काउ खांसता देख शेर चिल्लाया : मोय इन्फेक्सन ते बचा लो...मन्ने नहीं खाना खजूर...माता जेई नू खांसी की दावा दो..आर मन्ने एक गिलास पानी..!! मौ पै रहम कर माई...!!
<शेर की गांधीगिरी देखकर ज़मींदार को हृदय परिवर्तन हो गयो>
दी एंड

Monday, July 19, 2010

वफाओं का सिला...!!

वो शख्श जब से गया फिर कभी मिला नहीं,
ऐसा बुझा चिराग मेरा आज तक जला नहीं.
ज़माना इस दस्तूर को कहता है बेवफाई,
मगर मुझे उस शख्श से कोई गिला नहीं.
खुल गया दरवाज़ा मेरी ये कैसी हवा चली, 
पेड़ों का तो एक भी पत्ता हिला नहीं.
जाने कैसा हो गया फिजाओं का दस्तूर आज,
एक कली भी मुस्काई नहीं एक फूल भी खिला नहीं.
सारे जाने से वफ़ा की ए तुने "सूर्य प्रकाश"
क्या ये सब तेरी वफाओं का सिला तो नहीं.
"अब मैं नहीं हम"

Tuesday, July 13, 2010

आखिर कब...

आज सुबह अखबार पढ़ते ही भारत के एक और कीर्तिमान की ओर बढ़ते क़दमों के बारें में पता चला....
"26 अफ्रीकी देशों कि कुल गरीब जनसँख्या से भी ज्यादा गरीब भारत के केवेल 8 प्रदेश में ही रहते है. जहाँ २६ अफ्रीकी देश में कुल 41 करोड़ गरीब है वहीँ हमारे देश के 8  प्रदेशों (उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार, छत्तीशगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान और पश्चिम बंगाल) में कुल 42 .1 करोड़ लोग गरीब है. और ये संख्या कम होने की बजे  बढ़ती ही जा रही है...
"आखिर कब... तक पूरी दुनिया के लिए छत से लेकर उनकी सुख सुविधाओ से जुड़ी हर छोटी बड़ी चीज बनाने वालों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की बुनायादी जरूरतें कब पूरी होंगी"

Friday, July 2, 2010

Only India

Love to Country.....!!

Live to Country......!!

Stay to Country......!!

Breath to Country...!!

Care to Country......!!


~~~~~Proud to be INDIAN~~~~~



Monday, May 24, 2010

इंतजार...

इंतजार...
वो शब्द जिसके भीतर छिपे है हर आने वाले कल के असंख्य राज...जिनमे कुछ खुशियों के फूल है..तो कुछ गम के कांटे...!! कभी होठों कि मुस्कान है..तो कभी आँखों का पानी...!! बस इन्ही उम्मीदों के साए में हमारी आँखें भी एक उस पल के इंतज़ार में है...कि आखिर हमारे इंतजार कि इंतहा क्या होगी...!!
पता नहीं कि..
रोयेंगी आँखें मुस्कुराने के बाद...या आएगा दिन रात ढल जाने के बाद...!!
काजोल से समानता
एक बार हम हमारी एक प्यारी सी मित्र
मीनाक्षी जी (one97) को ट्यूशन पढ़ाने गए....
और पहले ही दिन उन्होंने हमसे सवाल किया कि...
सूर्य प्रकाश जी...
क्या हमारी आँखें  "काजोल" से मिलती है..
पर हम टीचर थे, सो बात टाल गए...
अगले दिन उन्होंने फिर वही सवाल किया..
हम फिर से टाल गए...
और एक दिन तो,
उन्होंने हाथ पकड़ कर ज़बरदस्ती बैठाकर पूछ ही लिया कि...
सूर्य प्रकाश जी...
आज तो आपको बताना ही पड़ेगा...
क्या हमारी आँखें "काजोल" से मिलती है...
हमें भी क्या हमने बोल दिया सच....
और कहा कि...
अरी मूर्ख बालिका...तेरी एक आँख तो दूसरी आँख से मिलती नहीं..
"काजोल" से क्या ख़ाक मिलेगी....!!

"हा हा हा हा हा हा हा"

Wednesday, May 19, 2010

आखिर.... .....अब किसे दोषी करार दें....??????

                                               
          हमारी माननीय मुख्यमंत्री साहिबा...बहन मायावती...उत्तर प्रदेश में लगभग पिछले 30 महीने से अपने हर भाषण में एक ही बात का व्याख्यान करती आई है...कि केंद्र उनके राज्य से बसपा कि वजह से सौतेला व्यवहार करता है...और बार बार इसी बात को सुनकर मैं सोचता कि कहीं वास्तव में ही तो ऐसा नहीं कि 2  पार्टियों कि वर्चस्व में बेचारी आम जनता बेवजह पिस रही हो...विकास ठप हो रहा है...उद्योग लगातार बहार का रास्ता तलाश रहे हो...पर रायबरेली में कोच कारखाने का विरोध...फिर सारकारी खजाने से महंगे पार्कों और बसपा नेताओं की मूर्तियों का निर्माण..मनरेगा में वित्तीय गड़बड़ियां...इंजिनियर की चंदा न देने पर हत्या...जैसे कृत्य... क्या ये तस्वीर साफ़ करने के लिए पर्याप्त नहीं है की आखिर उत्तर प्रदेश की दिन पे दिन जर्जर होती हालत के लिए मुख्य दोषी  " केवल भाषणों में उभर कर आने वाला केंद्र का सौतेला व्यवहार है...या बहुमतीय सत्ता की अंधेर नगरी में जातीय और दलित नारों की खोकली कुर्सी पर बैठा एक चौपट राजा...!! और अब.. जब की योजना आयोग ने राज्य द्वारा विकास के लिए मांगी गई संपूर्ण राशि 42000 करोड़ रुपए को आबंटित कर दिया है.. ऐसे में अब हमारी माननीय मुख्यमंत्री बेचारी भोली भाली जनता के सामने किस केंद्र विरोधी जवाब का मसोदा पेश करेंगी...अब मुझे अपने इस जर्जर होते प्रदेश के लिए उसी एक और बयान का इंतजार है...!! 

Friday, March 19, 2010

अपेक्षा और उपेक्षा नहीं, बल्कि योग्यता पर यकीन रखें...!!

          मैं एक युवा हूँ, और अपने समकक्ष हर उस युवा के अंतर्मन की पीड़ा को समझ सकता हूँ जिसने जिन्दगी की इस सबसे हसीं, जोश से भरपूर और स्वर्णिम अवस्था में कदम रखा है. मेरी ये बात उन् सभी युवाओं के लिए है जो इस देहलीज पर कदम रखते ही अपनों की महत्वाकांक्षाओ और अपेक्षाओं के बोझ के तले इस अवस्था में कदम रखते ही अपने को सबसे ज्यादा असहज और तनाव में पाता है. पर जरूरत है अपने को इन सबके विपरित सबसे श्रेष्ठ सिद्ध करने की. और इस कामयाबी में उनके सच्चे दोस्त है, आत्मविश्वास,  चिंतन शीलता और चरित्र. क्यों की इन्ही तीनों के सम्मलित रूप से आपका व्यवहार बनता है और उसी से ही तैयार होती है सफल व्यक्तित्व की राह.
          आज ही नहीं अपितु प्रारम्भ से ही युवाओं को हमेशा से आलोचना का शिकार होते रहना पड़ा है उनके द्वारा किये गए हर अच्छे कार्य के लिए प्रोत्साहन तो केवल औपचारिकता भर ही होता है, और आलोचना ऐसी कि एक बार तो लगे की भगवान ने इस जीब में हड्डी न लगाकर मानव जाति को सबसे बड़ा अभिशाप दिया है.आज किसी युवा के भटकने, तनाव ग्रसित होने या उसके किसी भी गलत कार्य में विलुप्त होने पर हम उसके खुद के आचरण से लेकर उसके परिवार तक के आचरण पर कलंक थोपने में पल भर का भी समय नहीं लगाते. अगर इसका कुछ सार्थक प्रतिशत भी इसके कारणों को जाने और उसमे अपेक्षाअनुरूप सकारात्मक बदलाव लाने के एक कदम भी आगे बढाया जाता, तो आज जिस भारत का पुरे विश्व में सबसे युवा देश होने  का डंका बजता है, वो केवल कागजो में युवाओं कि जनसँख्या के आधार पर नहीं अपितु युवाओं कि अटूट संकल्शक्ति और गहरी चिंतनशीलता, और पावन चरित्र के आधार पर युवा देश होता. और ये नहीं हो पाया..इसका केवल और केवल एक ही कारण है, वो ये कि युवा को हमेशा से ही अपनी परिवार, समाज, दोस्त, रिश्तेदार, और अध्यापकों..यानी हर कहीं- हर मोड़ पर उपेक्षाओं का सामना करना पड़ा है, और इन्ही उपेक्षाओं के ही परिणाम स्वरुप ही आज युवा न चाहकर भी ऐसे काले घने अँधेरे कोने के अस्तित्व में समाया जा रहा है, जिसका समाधान केवल और केवल उनके महत्व को समझने से ही मिल सकता है. उनको हर पल ये एहसास देना जरूरी है कि ...
"अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि टीम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो."
~पं श्री राम शर्मा आचार्य~
         परन्तु इसके बजाय यौवन की देहलीज पर कदम पर कदम रखते ही युवा अपेक्षओं का बोझ और उपेक्षाओं के तीखे प्रहार के बीच अपने को असहज महसूस करना शुरू कर देता है. क्यों की यही वो दौर है जहाँ से उसकी सोच, उसकी महत्वाकांक्षाओ, उसके सपनों को पहला कदम मिलता है. और उसी के साथ हो जाता है अपेक्षाओ और उपेक्षाओं का दौर....!! परिवार की दृष्टि से अगर बात करें तो यहाँ शिव खेड़ा जी द्वारा उनकी पुस्तक "जीत आपकी" में उद्वेलित एक वाक्य सटीक बैठता है, उन्होंने लिखा है...
"अक्सर माँ बाप अपनी महत्वाकांक्षाओ के चलते उसे सबसे अधिक नुक्सान पहुंचा बैठते है, जिसे वो सबसे अधिक प्यार करते है."
          और ये बात तभी सिद्ध हो जाती है, जब माँ बाप बच्चो के सपनों पर ध्यान न देकर अपने सपनो को उन पर थोपने का प्रयास करते है. उनका मन चाहे या न चाहे पर ज्यादातर माँ बाप अपने बच्चो को डॉक्टर, इंजिनियर, आई. ए.एस से कम तो बनाना ही नहीं चाहता. उस वक़्त उनकी हर रचनात्मक बात को वो महत्व तक भी दिया नहीं जाता, जिसके लिए वो पुरस्कार के सह्बागी भी बन सकते है.  और अफ़सोस की बात तो ये है की खुद माप बाप इस आयु से निकल चुके है, फिर भी उनके सपनों को समझने में कई बार तो इतनी देर लगा देते है, जब उसका कोई भी औचित्य नहीं रह जाता.
          अगर हम दोस्तों की दृष्टि से देखें,  तो ये तो स्वाभाविक ही है कि  इस दौर में प्रतियोगिताएं अधिक है और अवसर का. ऐसे में एक दूसरे में अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करना तो ठीक है, पर एक दूसरे को नीचा दिखाना, अपने सहभागी या सहपाठी को उत्साह देने के बजाय हतोत्साहित करना नैतिकता के मायने में एक गहरा अपराध है, क्यों कि जब कोई सहभागी ही बात नहीं समझेगा तो उससे नकारात्मक तनाव उभरना लाजिमी है, और ये भी उसके दिशाहीन यौवन में ताबूत कि कील के ही समान है.
          अगर हम समाज की  बात करें तो यहाँ कि स्थिति का फर्क तो तभी पड़ना शुरू होता है,  जब युवा अपने परिवार और सहभागियों से उपेक्षित हो जाता है, क्यों  कि अपनों में तन्हापन पाने के बाद ही कोई समाज की विभिन्नताओं में अपनी खुशियाँ तलाशता है, और ये तलाश किस ख़ुशी में अपना अक्ष ढूंढें, यहीं से एक गंभीर चिंता की लकीर मस्तिष्क पर उभरना लाजिमी है, इसके बावजूद हम इन लकीरों का कारण जानते हुए भी इसे खामोश ही रहते है, और दूसरों को कोषते हुए हमेशा ही अपने को पूर्वाग्रह से ग्रसित रखते है. लेकिन अगर हम अपनी नज़रों को थोडा सा गहराई में ले जाने का प्रयास करें तो पायेंगे कि इस उम्र की दहलीज तक आने तक युवा मन लगभग पवित्र होता है, और उपेक्षाओं के लगातार मानसिक प्रहार और अपेक्षाओं के बढ़ता बोझ ही उसे अनैतिक कार्यो में विलुप्त होने पर मजबूर करता है, और वैसे भी --
  "हर मनुष्य एक ख़ुशी और संतुष्टि  पाने के लिए जीता है और अगर उसे वही न मिले तो उसे पाने के लिए वो कुछ भी करना चाहता है पर खुश रहना चाहता है."
          रोज़मर्रा कि जिन्दगी में एक बात जो किसी के भी सपनो पर कुठाराघात करते हुए आमतौर पर सुनी जा सकती है. जब भी कोई अपने सपने, अपनी मंजिलो के रास्ते कुछ अलग और नया करके पाने की  कौशिश में जैसे ही पहला कदम बढाता है, तभी से उसे एक बात अपने दोस्तों, अपने पड़ोसियों, समाज, रिश्तेदारों और कभी कभी खुद माँ-बाप से ही लगातार सुनने को मिलती है...
"ऐसे कोई आगे बढ़ा है, इतनी सारी भीड़ पड़ी है, चले है सपने पूरे करने, अभी अक्ल तो है नहीं, जब खाली हाथ लौट के आएगा तब पता चलेगा कि सपने देखने में कोई टैक्स नहीं लगता.
          और जब वही उस राह पर कदम बढाते हुए अपनी मंजिलो को पा लेता है, सपनो को हकीकत की शक्ल दे देता है, तब उन्ही लोगों की जुबां कुछ इसी अंदाज़ में बोलती है....
"हमें तो पता ही था ये इसे पा ही लेगा, आखिर टैलेंट भी था, जूनून भी था, लग्न भी थी, तो कैसे नहीं मंजिल मिलती."
         अगर युवा की योग्यता को भांपकर शुरुआत से ही ऐसे हौंसले युवाओं को कदम कदम पर प्रोत्साहन और उपहार  के रूप में दिए जाते दे, तो यकीन कीजियेगा कि कोई भी कभी भी अनैतिक मार्ग पर दिखाई नहीं पड़ेगा और जिस संस्कारित समाज के आईने में हम अपने अक्ष को देखना और महसूस करना चाहते है, वो निश्चित ही स्वर्ग नहीं तो कम से कम स्वर्ग  की परिकल्पना से तो कम नहीं होगा.
          वैसे भी वेदमूर्ति पं श्री राम शर्मा आचार्य जी ने कहा है कि---
"अगर किसी को उपहार देने का मन हो तो आत्मविश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन उपहार में दें."
          ताकि आपका उपहार उस श्रेष्ठ व्यक्तित्व के निर्माण से हज़ारों लोगो तक विस्तारित हो. और हमारा भविष्य स्वर्णिम होने के साथ साथ खुशहाल भी हो. इसलिए मेरा अपने हर भारतवासी से एक हार्दिक आग्रह है कि इस युवा पीढ़ी को पूरे विश्व की सबसे शसक्त युवा शक्ति बनाने में उपेक्षा और अपेक्षा को दूर कर..~योग्यता पर यकीन..~ को अपने परिवार, समाज और देश के समुन्नत भविष्य के नीव का आधार बनाये. और आप यकीन मानिये ये नीव आने वाले कई युगों के लिए मजबूत आधार स्तम्भ बनेगी. और एक बात कि....

"अब मैं नहीं हम"

Tuesday, March 16, 2010

~विचार : जो युग परिवर्तन कर दें ~
16 मार्च 2010 
"किसी का सुधार उपहास से नहीं, बल्कि उसे नए सिरे से सोचने और करने का अवसर देने से होता है."    पं श्री राम शर्मा आचार्य

Monday, March 15, 2010

नारी ही यदि है अज्ञान, तो देश कैसे बने महान

       आज कल एक चर्चा हर किसी के बीच बहस बन जाती है, माहिला आरक्षण बिल का नाम लेते ही हमारे लोक प्रतिनिधियों यानी सांसदों में कहा सुनी हो जाती है. लेकिन एक बात जो मैं सोचता हूँ कि क्या वाकई इस मुद्दे पर इतना बवाल होना जरूरी है..., क्या इस मुद्दे पर लोकतंत्र को तार तार करना जरूरी है. क्या किसी ने इस बेबुनियादी बवाल में शामिल होने से पहले, समाज में होने वाले इस ऐतहासिक बदलाव के क्षणों से सुनहरे भविष्य की आहट महसूस की..? और इस आहट को महसूस करने के लिए हमें जड़ों से पत्तो तक का सफ़र करनाहोगा.

       महिला, स्त्री ये शब्द सुनते ही हर किसी के जेहन बहुत सी तस्वीरें बनकर उभरती है, कोई आधी आबादी की व्याख्या रुपी गहराई में चला जाता है, तो कोई काम के वासना रूप को सोचने लगता है...तो कोई उसके पावन रूप पत्नी, बीवी, बहन के बारें सोचने लगता है. लेकिन हम उसे किसी भी रूप में देंखे, एक सम्मान कहीं न कहीं, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मन में उभर ही आता है. वो बात अलग है कि समाज के दृष्टिभ्रम ने उसको उसका सम्मान देने के बजाय उसे एक उपभोग समझकर अपमान के कडवे घूँट पीने के लिए पग पग पर मजबूर किया, और आज उसी मजबूरी को महिलाओ का शसक्त शस्त्रीकरण का हाथियार बनाने का प्रयास किया जा रहा है. और महिला आरक्षण बिल को इसी महाभियान के तहेत पहली पूर्णाहूति माना जा सकता है.
लेकिन हमारे कुछ महत्वाकांक्षी नेता...जो इस पवित्र और सार्थक पहल में अपना रोड़ा अटकाने का प्रयास कर रहे है, क्या उन्हें इतना भी याद नहीं कि जिनके आरक्षण के लिए वो विरोध कर रहे है, आज उनका अस्तित्व उन्ही के अक्ष की देन है. क्या वो पल भर के लिए भी ये सोचने का प्रयत्न नहीं करते कि जब समाज में हमेशा उपेक्षाओ का सामना करते करते नारी ने इस सृष्टी को ऐसे ऐसी महान विभूतिया दी है जिनके अनुसरण ये समाज आगे बढ़ता है, अगर उन्हें एक अंश के रूप में भी समाज में उच्च स्थान दिया जाएगा तो वही नारी हमारी गौरवपूर्ण संस्कृति को कितने और रत्न देगी. परन्तु सत्ता की अंधी दौड़  में जो परिवार तक को भुला बैठा है, उसे भला समाज के स्वर्णिम भविष्य से क्या लेना देना. उसे तो केवल अपने हिस्से की स्वार्थ की रोटियां चाहिए. लेकिन इस पूरे प्रकरण मैं कोई भी चाहे कुछ भी करें या कहें पर एक बात हमेशा ध्यान रखने की है..वो ये कि... 

"नारी इस ब्रह्माण्ड और सृष्टी की जनक और पोषक दोनों ही है, या यूं कहें हर मानव, हर परिवार, हर समाज और हर राष्ट्र की नीव नारी है, अगर हम अपनी नीव को मजबूत करने में सहयोगी बनेंगे तभी हमारा भविष्य भी मजबूत होगा, और इतिहास गवाह है की जब - जब नारी को अपनी योग्यता दिखाने का मौका मिला है , तब तब उसने अपने आप को पुरुषों से भी श्रेष्ठ प्रस्तुत किया है. चाहे वो लक्ष्मी बाई हो, पन्नाधाय हो, मदर टेरेसा हो या इंदिरा गाँधी...!! इसलिए मेरी अपने भारतवासियों और और उन् लोगो से, जो भी मेरा ब्लॉग पढ़ते है , उनसे ये निवेदन है कि इस ऐतहासिक पहल का खुलकर समर्थन करें, और हमारे भारत को समुन्नत राह की और अग्रसर करने में अपना छोटा ही सही मगर महत्त्वपूर्ण योगदान निभाएं."
~नारी ही यदि है अज्ञान, तो देश कैसे बने महान~

तो बस 
"अब मैं नहीं हम"

~विचार : जो युग परिवर्तन कर दें~
15 - मार्च-2010 

जीवन में ऊंचा उठने के चार सूत्र :-
 > ईमानदारी
> समझदारी 
> जिम्मेदारी
> बहादुरी
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

Friday, March 12, 2010

~ विचार : जो युग परिवर्तन कर दें ~
11-मार्च 2010 
"अधिकार नहीं, कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहे."

Thursday, March 11, 2010

~ विचार : जो युग परिवर्तन कर दें ~
11-मार्च 2010 
"इस बात का महत्व कम है कि  हमें विरासत में क्या मिला, बल्कि महत्व इस बात का है कि हम विरासत में क्या छोड़ कर जायेंगे, इसलिए स्वयं अपनी विरासत का निर्माण करें."

Wednesday, March 10, 2010

"हर लम्हा हमारा है- हर कण हमारा है "

          कुँए में पानी के छोटे छोटे स्रोत इधर उधर से आकर गिरते है और उन्ही नगण्य सी इकाइयों के अनुदान से बना यशस्वी कुआँ असंख्य मनुष्यों, प्राणियों, वनस्पतियों की प्यास बुझाते रहने में असमर्थ होता है. कुँए का सारा यश उन जल धमनियों के आत्मदान का प्रतिफल है. यदि वे संकीर्ण होती, अपना बचाव सोचती, अपनी संपत्ति को मुफ्त में देने से कतराती तो इस संसार में एक भी कुआँ न बन सका होता और यहाँ सब कोई कभी के प्यास में तड़पकर अपना अस्तित्व गवां चुके होते.          
          संसार की सुख शांति, समृद्धि औत सुन्दरता एक यशस्वी कुँए की तरह हैं, जिसे सजीव रखने के लिए कुछ जल धमनियों का, उत्क्रष्ट आत्माओं का निरंतर अनुदान मिलते रहना आवश्यक है. इन दिनों भारी दुष्काल इसी सत्प्रवृत्ति में पड़ गया है. लोग अपनी व्यक्तिगत तृष्नाओं की पूर्ति में सिर से पाओं तक डुबे पड़े है. दान, पुण्य, पूजा-पाठ के नाम पर राई रत्ती जैसे उपकरण इस आशा में खरच करते है, कि एक अगले ही दिनों वह लाखों करोड़ों गुना होकर उन्हें मिल जाएगा. अविवेकी नर-पशु इस स्तर के हो तो बात समझ में आती है, पर भक्तिज्ञान, अध्यात्म, वेदांत, ब्रह्मज्ञान, तत्वदर्शन जैसे विषयों पर भारी माथापच्ची कर सकने में समर्थ लोग जब इस कसौटी पर कसे जाते है कि उनका अनुदान समाज के लिए क्या है..? तो उत्तर निराशा जनक ही मिलता है. ऐसा ब्रह्मज्ञान भला किसी का क्या हित साधन करेगा जिसने मनुष्य के हृदय में इतनी करुणा एवं श्रद्धा उत्पन्न न की हो कि विश्वमानव को उसके अनुदान कि महत्ती आवश्यकता है और वह उसे देना ही चाहिए.
          यहाँ ये बात स्मरण रखने योग्य है कि इस पूरी प्रकृति का चक्र एक दूसरे पर निर्भर है...जैसे समुद्र से बादल बनते है, बादल से वर्षा होती है, वर्षा से छोटी छोटी नदियाँ बनती है, और नदियों से समुद्र बनता है. ठीक इसी प्रकार पेड़ मनुष्य को ऑक्सिजन देते है, और मनुष्य द्वारा पेड़ों को कार्बन डाई ऑकसाईड मिलती है.
          इसलिए,
मानव होने का सही अर्थ यही है कि पृथ्वी पर उस परमात्मा द्वारा बनाये प्रकृति के अनमोल आपसी देने और लेने कि सुन्दर प्रक्रिया में अपने जीवन का सार ढूढने की कौशिश करें...इसके बाद "हर लम्हा हमारा है- हर कण हमारा है और हम उन् लम्हों के है-हम उन् कणों के हैं " .
~!!...यही मनाव जीवन के सारगर्भित हर अक्ष की दास्ताँ है...!!~

अब मैं नहीं "हम"
~ विचार : जो युग परिवर्तन कर दें ~
10-मार्च 2010 
"लोकमंगल की सर्वकल्याणकारी सत्प्रवर्त्तियों से ही किसी व्यक्ति, देश, धर्म, समाज तथा संस्कृति की उत्कृष्टता नापी जा सकती है. खरे खोटे की पहचान भी इसी आधार पर होती है."                                                       पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

Tuesday, March 9, 2010

"Mann"

सच में...ऐसा ही होता है मन

मन...!! बहुत ही अजीब होता है ये मन ,

जो कभी दुनिया के ग़मों में खुशी पाता है, 
तो कभी अपनों के साथ भी तन्हा हो जाता हैं.

जो कभी हर मुकाम को जीत लेना चाहता है, 
तो कभी एक ठोकर से ही हिल जाता है.

जो कभी उल्लास से भर जाता है, 
तो कभी गम के सागर में भी खो जाता है.

जो कभी समय को अपने पीछे चलाता है, 
तो कभी समय एक छोटे से झोंके से हिल जाता है.

जो कभी परायों में भी अपनापन पाता है,
तो कभी अपनों में भी पराया बन जाता है.

जो कभी माया के मोह में घिर जाता है, 
तो कभी सूखी रोटी में भी आनंद पाता है.

जो कभी जज्बात संग बह जाता है, 
तो कभी पत्थर से भी सख्त हो जाता है.

जो कभी बुलंद हौसलों से भर जाता है,
तो कभी बिलकुल असहाय नज़र आता है.

जो कभी दुनिया के रंग में रंग जाता है, 
तो कभी हर रंग में भी अपने को बेरंगा पाता है.

जो कभी सब कुछ गंवाकर भी खुश रहना चाहता है,
तो कभी सब कुछ हड़प कर भी दुःख ही पाता है.

सच में...
मन
बहुत ही अजीब होता है ये मन....

आगे भी जारी रहेगी मन की ऐसी ढेरसारी पल पल बदलती दास्ताँ....

अब मैं नहीं "हम"


Always Be Positive



"हमेशा सकारात्मक रहे"

कभी कभी दिल गहराई से ज्यादा रोता है..और ये बात तब महसूस होती है, जब आपको किसी की शिद्दत से जरूरत महसूस होती है, और जिन्दगी में ना जाने ऐसे कितने लम्हे आते है, जब अपने सबसे पहले साथ छोड़कर चले जाते है. लेकिन जब हो जाती है इन्तहा उस परमात्मा के परीक्षा की, तब लोग समझते है की ये तो गया, पर उन अनजान और अज्ञानियों को क्या पता, यही से तो असली जीवन की राह शुरू होती है...जहाँ जिन्दगी हज़ार गमो के बाद खुलकर सांस लेती है.

अब मैं नहीं "हम"

Friday, February 12, 2010

~ विचार : जो युग परिवर्तन कर दें ~
12-फ़रवरी-2010 
"आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते है."                                         पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
                                                                             

Tuesday, January 5, 2010

~ विचार : जो युग परिवर्तन कर दें ~
5 जनवरी 2010 
* इस नए वर्ष, ये प्रज्ञा रुपी विचार आपके जीवन में एक समुन्नत राह प्रदान करें, इसी भाव के साथ मेरी ओर से सभी भारतवासियों को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं *


"अगर किसी को उपहार देने का मन हो तो, आत्मविश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन उपहार में दें"   पं श्री राम शर्मा आचार्य