Sunday, September 5, 2010

कॉमनवेल्थ गेम्स- मुसीबतों का पिटारा भाग - 1

        कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों  के दौरान खास खेल में शिरकत करने वाले मेहमानों और खिलाडियों के आवाजाही के इस्तेमाल के लिए बनाई गयी ब्लू लेन का कल शनिवार 4 सितम्बर 2010 को  ट्रायल हुआ, और ये ट्रायल दिल्लीवासियों के लिए 20 सितम्बर से 20 अक्टूबर तक कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान पहली कुर्बानी की ओर  एक इशारा था...!! इस लेन में प्रवेश करने का मतलब है सीधे आपकी जेब से 2000 रूपैय छू मंतर...और साथ ही घर से ऑफिस और ऑफिस से घर पहुँचने के लिए एवेरेस्ट पर चढ़ने जैसी मसक्कत. ....पर कहीं ऐसा तो नहीं की ये कलमाड़ी जी का कॉमनवेल्थ गेम्स पर लगी राशि निकालने का नया फार्मूला हो.. क्यों कि लगभग 3 करोड़ की जनसँख्या और हर रोज़ सड़कों पर लगभग 40 लाख से ज्यादा वाहन का झेलने वाली वाली दिल्ली में ये नियम कितना कारगर हो पायेगा, इसके लिए यहाँ बताने की नहीं बल्कि गेम्स के बाद ट्रफिक व्यवस्था के उन चालानों को खंगालने की जरूरत है जो केवल ब्लू लेन के लिए काटे गए है. पर "कहें भी क्या और करें भी क्या" जब हमारी पब्लिक ही खामोश है तो भला हम लोकतंत्र के अपराधी क्यों बने. पर हम सब अपना फ़र्ज़ निभाकर अंतिम साँस तक लोगो की अंतरात्मा को जगाने के लिए काम करते रहे,  क्यों की ये देश हमारा है...!! 
    ये थी हमारी कॉमनवेल्थ गेम्स पर जनहित के लिए पहली पेशकश..!! आगे और भी बहुत कुछ कर रहा है आपका इंतजार.....!! क्यों कि ..... 
अब मैं नहीं "हम"   

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