Thursday, December 23, 2010

सरकार और देश का विरोधी बनकर देशभक्ति का गुणगान - समझ से परे

       पिछले कई दिनों से मैं अपने एक सर्वे में लगा था, सर्वे इस बात का कि आखिर भारत में कुछ लोग, कुछ संगठन, कुछ राजनैतिक पार्टियां इत्यादि  किन विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार करने का आम जनता का आह्वान करते है,  सुबह शाम, हर पल अपनी बातों में गीता के उदाहरानो से लोगो को अपने प्रभाव में खींचने वाले लोगो को क्या इतनी बात भी समझ में नहीं आती कि गीता का सार ही "वसुधैव कुटुम्बकं" कि सूक्ति से बंधा है....ऐसे में क्या देशी और क्या विदेशी...और अपने इन्ही प्रश्नों का जवाब लेने के लिए मैंने बहुत से युवाओं से प्रत्यक्ष और बहुत से युवाओ से फैसबुक के माध्यम से बात कि ...पर दुःख ही हुआ कि अभी उनके आधार हिन् तर्क थे..और आने वाले समय में उनका अपने ही देश से विद्रोह पनपेगा....और मुझे सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा कि जो युवा भारत के सहयोगी बन सकते है, उनको आधारहीन और देश कि सरकार के विरुद्ध एक हथियार बनाकर इस्तेमाल करने कि शीत योजना चल रही है....!! 
       ऐसे मैं उन सब युवाओ से अपनी बात शुरू करने से पहले एक बात ये कहना चाहूँगा कि...अपने देश में रहने वाले ऐसे किसी भी व्यक्ति, पनपने वाले किसी भी व्यवसाय या लागू होने वाली किसी भी ऐसी योजना , जिसकी अनुमति सरकार ने काफी विचार करने के बाद दी हो, उनका विरोध करना देश भक्ति नहीं हैं बल्कि हम देश को भविष्य के सन्दर्भ में एक और आतंरिक विद्रोह का दूरगामी अवसर दे रहे है.
       चलिए अब हम युवाओं से हुई ढेरसारी बातों का विश्लेषण करने की और चलते है...और इसका निर्णय वे सभी लोग करें जो भी इस लेख को पढ़ें, और सोचें कि आने वाला भारत ऐसे संगठनो के साथ आगे बढ़कर स्वर्णिम होगा या "We Youth Foundation" की स्वयं निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण की योजनागत तरीके से तैयार कि गई विकासात्मक नीतियों के साथ...
       अपने इस सर्वे की शुरुआत मैं सभी से एक प्रश्न के माध्यम से करता था, कि आखिर वो समाज कार्य से क्यों जुड़े, कोई भी एक सेमीनार या सामाजिक कार्य का हिस्सा बनकर आप क्या महसूस करते है, और इसका जवाब भी सभी से एक जैसा ही मिलता, जीमे कोई कहता कि उनको कि उन्हें अच्छा महसूस होता है और कोई कहता कि उन्हें आतंरिक संतुष्टि मिलती है, पर इसके बाद जिन प्रश्नों का जो सिलसिला शुरू होता वही से भ्रम का मायाजाल भी शुरू होता, और अनुमान होता था कि  ये भी सरहद पार चल रहे आतंकवादी शिविर से कम नहीं है.
       उनसे पुछा गया की वो विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार को क्यों ठीक समझते है...तो किसी का जवाब मिला कि एम् .एन.सी कम्पनीयां भारत को लूटने में लगी है, किसी ने कहा कि कोका कला कम्पनीयों के पेय मानक ठीक नहीं है, किसी ने कहा कि कोलगेट कंपनी के उत्पाद ठीक तरीके से नहीं बने हुए, और किसी ने कहा कि खेती में विदेशी तकनीकी के फर्टीलाईज़र का इस्तेमाल मिटटी को कमजोर कर रहा है...इसलिए भारत सरकार से आरपार की लड़ाई करने का इरादा है..
       अब अगर हम इन् बेतुकी बातो कि थोड़ी सी चीड फाड़ करे तो स्थिति बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि आखिर ये युवा अपनी ही सरकार के बेवजह विरोधी बनकर देश द्रोही बनने कि ओर अग्रसर है.. क्यों कि जिन एम्.एन.सी कंपनी का लोग विरोध करने और करने को भीड़ जोड़ रहे है आज उन्ही एम्.एन.सी कंपनी कि वजह से हम दोबारा अपने पैरों पर खड़े हो पाएं है, इसके लिए उन्हें 1990 में आये आर्थिक पतन का विश्लेष्ण करना चाहिए....
       अब दूसरी बात आती है कि कोका कोला या कोलगेट जैसी कम्पनीयों के मानक...इसके लिए सरकार या कम्पनीयां नहीं बल्कि जनता खुद दोषी है , क्यों कि सरकार हमारी ही जेब से इकठ्ठे किये गए रुपये में से करोड़ो सिर्फ इसलिए खर्च करती है जिसमे ये प्रचार होता है कि कोई भी चीज़ ISI mark देखकर ख़रीदे...तो फिर हम उसे खरीदते ही क्यों है , क्यों नहीं उसको बंद करने के लिए सरकार पर दबाव डाला जाता. न्यायालय के दरवाजे सभी के लिए एक बराबर खुले है, बशर्ते कि क्रातिकारी शुरुवात को पैसो के बल से शान्ति से न दबा दिया जाए.
       उसके बाद अगर खेती में विदेशी फर्टीलाईज़र कि बात करे तो इसका जवाब हमारे खुद के ही पास है, इसके लिए जरा गौर करने वाली बात ये है कि सरकार पिछले 50 सालो से भारत कि जनता से आग्रह करती आई है कि 'हम दो हमारे दो'....पर फिर भी आज हमारी जनसँख्या 50 सालों में  30 करोड़ से 1 अरब हो गई..जिसकी वजह से खेती कि ज़मीन पर घर बनाने के कारण खेती की जगह कम होती जा रही है और जनसँख्या बढ़ती जा रही है, ऐसे में अगर लोगो की जरूरतें पूरी न हो तो फिर सरकार दोषी...आखिर कब तक अपनी कमियों को भूलकर दूसरो पर दोष लगते रहेंगे..
       अब सबसे ज्यादा ताज्जुब तो मुझे तब हुआ जब विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार करने वाले इन् संगठनो से जुड़े लोगो की जीवन शैली, आश्रम और कार्यालयों का मैंने सर्वे किया, क्यों कि वहां एल. जी का ए.सी लगा था, घुमने के लिए टोयोटा कि गाड़ी थी, बाथरूम में सेनिटरी हुकाची की  थी, सबके हाथ में मोबाइल नोकिया का था, मतलब हर तरफ विदेशी वस्तुओं की चमक धमक ...फिर भी पता नहीं क्यों हमारे युवा इन् बातों को नज़रंदाज़ कर अंधी भीड़ में शामिल होकर जुड़ते चले जाते है...
और इसके विपरित इतिहास गवाह है की भारत में हमेशा सबको गले लगाकर अपनाया गया है, इसी कारण हमारा भारत सभी देशो में सबसे महान माना जाता है और अपने इसी स्वभाव के ज़रिये ही पूरा विश्व भारत को आने वाले समय का विश्वगुरु की संज्ञा दे चुका है... और भी बहुत सी बातें इस सर्वे में निकल कर आई जिनका अगले लेख में जिक्र और समाधान किया जाएगा....बस एक बात जो सभी युवाओ से "We Youth Foundation" के माध्यम से आपको एक सन्देश के तौर पर कहनी है वो ये की " विरोध से विद्रोह पनपता है, विद्रोह से अशांति का जन्म होता है और अशांति से केवल विनाश होता है" गीता भी यही कहती है "वासुदेव कुटुम्भकम " और वैसे भी विद्रोह करके किसी का सहयोग नहीं पाया जा सकता इसके लिओये खुद से तपना पड़ता है...और वही ताप क्रांति और इसी क्रांति से परिवर्तन की इबादत लिखी जाती है...."
       इस लेख से जुड़े किसी भी समाधान को स्पष्ट करने के लिए या अगले लेख से जुडी भी किसी भी जिज्ञाषा के लिए कभी भी 9871117901 या 9368015620  पर कॉल करें या surya.dsvv@gmail.com पर मेल भेजें.... देश और विश्व के सुनहरे भविष्य के लिए आज ही "We Youth Foundation" का हिस्सा बने...
To Be Conitnue.....
क्यों कि 
"अब मैं नहीं हम"