Tuesday, March 9, 2010

"Mann"

सच में...ऐसा ही होता है मन

मन...!! बहुत ही अजीब होता है ये मन ,

जो कभी दुनिया के ग़मों में खुशी पाता है, 
तो कभी अपनों के साथ भी तन्हा हो जाता हैं.

जो कभी हर मुकाम को जीत लेना चाहता है, 
तो कभी एक ठोकर से ही हिल जाता है.

जो कभी उल्लास से भर जाता है, 
तो कभी गम के सागर में भी खो जाता है.

जो कभी समय को अपने पीछे चलाता है, 
तो कभी समय एक छोटे से झोंके से हिल जाता है.

जो कभी परायों में भी अपनापन पाता है,
तो कभी अपनों में भी पराया बन जाता है.

जो कभी माया के मोह में घिर जाता है, 
तो कभी सूखी रोटी में भी आनंद पाता है.

जो कभी जज्बात संग बह जाता है, 
तो कभी पत्थर से भी सख्त हो जाता है.

जो कभी बुलंद हौसलों से भर जाता है,
तो कभी बिलकुल असहाय नज़र आता है.

जो कभी दुनिया के रंग में रंग जाता है, 
तो कभी हर रंग में भी अपने को बेरंगा पाता है.

जो कभी सब कुछ गंवाकर भी खुश रहना चाहता है,
तो कभी सब कुछ हड़प कर भी दुःख ही पाता है.

सच में...
मन
बहुत ही अजीब होता है ये मन....

आगे भी जारी रहेगी मन की ऐसी ढेरसारी पल पल बदलती दास्ताँ....

अब मैं नहीं "हम"


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