Monday, December 28, 2009

The Story of Relations

वफाओं का सिला
वो शख्स जब से गया फिर कभी मिला नहीं,
ऐसा बुझा चिराग मेरा कि आज तक जला नहीं.
ज़माना इस दस्तूर को कहता है बेवफाई,
मगर मुझे उस शख्स से आज तक कोई गिला नहीं.
खुल गया दरवाज़ा मेरा ये कैसी हवा चली,
पेड़ों का तो एक भी पत्ता हिला नहीं.
जाने कैसा हो गया फिजाओं का दस्तूर आज,
एक कली भी मुस्काई नहीं, एक फूल भी खिला नहीं.
सारे ज़माने से तुने  वफ़ा की ए "सूर्य प्रकाश",
क्या ये सब तेरी वफाओं का सिला तो नहीं.
बस "अब मैं नहीं हम"

"मैं" का एक और रूप ...
चारों तरफ है नज़ारा उसी का,
यारों मुझे बस सहारा उसी का.
जिस पर भी हो गया हुस्न मेहरबान,
धरती आकाश में बस सितारा उसी का.
जो बसा था  मेरे दिल में था अपनों की तरह,
मेरी तबाहियों में हाथ सारा उसी का.
कितनी बेवफाई है उसकी हर एक अदा में,
जिधर भी देखिये नज़ारा उसी का.
ऐ 'संजू" सभी तो दुनिया में वफ़ा नहीं करते,
जो कुछ भी है ज़हां में सारा उसी का.
तभी बस "अब मैं नहीं हम"




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